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नज़राना इश्क़ का (भाग : 21)










अगले दिन कॉलेज में..

विक्रम और फरी आपस में बैठकर बाते कर रहे थे, न चाहते हुए भी फरी की आँखें नम सी नज़र आ रही थी, वह विक्रम से चेहरा छुपाकर बात करने की कोशिश कर रही थी, शायद उसे उसके पापा की इस हरकत से बहुत ज्यादा तक़लीफ़ हो रही थी, मगर फिर भी वह स्वयं को सामान्य रखने की कोशिश कर रही थी।

"तो भाई..! कल से तो दीपावली की छुट्टी होगी न?" फरी ने बड़े प्यार से पूछा।

"जब होली आ रही है तो भला दीपावली की छुट्टी क्यों होगी?" विक्रम उसके सवाल पर आश्चर्य जताते हुए पूछा।

"ओह हाँ! सॉरी वो भूल जाती हूँ न..!" फरी ने सिर झुकाए हुए धीमे स्वर में कहा।

"अरे यार..! कोई समझाओ मेरी पागल सी बहन को, इतनी सी बात पे सॉरी कौन बोलता है वो भी अपने भाई को…!" विक्रम जरा ऊंची आवाज में नाराजगी जताते हुए बोला।

"क्या भाई आप भी न…!" फरी उसकी ओर देखने लगी।

"तुझे कुछ हुआ है क्या बहना?" विक्रम उसकी आँखों को देखता हुआ बोला, जो सुर्ख लाल पड़ी हुई थी, जैसे वह या तो रात भर सोई न हो या फिर बहुत रोइ हो।

"अरे नहीं तो भाई…!" फरी ने मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा। "जिसके पास आप जैसा भाई हो उसे क्या होगा..!"

"तो फिर क्या अपने भाई से बात छुपाना सही है? तुमने होली को दीपावली ऐसे कहा था मानो तुम्हें इसका कुछ पता ही न हो..! बताओ मुझे!" विक्रम उसकी आँखों में झाँकता हुआ जिद्दी स्वर में बोला।

"अरे कुछ नहीं भाई, मैंने तो बस मजाक किया था आप ज्यादा मत सोचो..! अच्छा मुझे भूख लगी है आज आप मुझे खाना नहीं खिलाओगे क्या?" फरी ने विक्रम का हाथ पकड़ते हुए मासूम स्वर में कहा।

"अरे ऐसे कैसे…! अभी खिलाता हूँ न अपनी प्यारी बहना को…!" कहते हुए विक्रम अपने बैग से टिपिन निकालने लगा।

"ऐ मिस्टर..! अपना खाना आप खुद खा लो, आज फरी को खाना मैं खिलाऊंगी…!" जाह्नवी क्लास में प्रवेश करते हुए बैग से टिपिन निकालते हुए बोली।

"ओ मिस..! मेरी बहन… मैं खिलाऊंगा..! मेरा हक़ ज्यादा बनता है समझी..!" विक्रम ने मुँह बिचकाते हुए कहा।

"ओ बड़े आये हक़ जताने वाले, दोस्त है अब वो मेरी…!" जाह्नवी अपना टिपिन लेकर फरी के बगल में बैठते हुए बोली, अब फरी दोनो ओर से घिर गई थी।

"तुम्हारी दोस्त…! कब से…!" विक्रम आँखे फाड़-फाड़कर जाह्नवी को घूरते हुए कहा।

"कल से मिस्टर भुल्लू…! और आज से ये हमारे साथ हमारी बस में ही जाएगी।" जाह्नवी ने फरी का हाथ पकड़ते हुए कहा।

"तुम्हें नहीं लगता तुम कुछ ज्यादा हक़ जता रही हो..!" निमय ने मुँह बिचकाया।

"मुझे तो ऐसा बिल्कुल नहीं लगता…!" जाह्नवी ने मुस्कुराते हुए कहा।

"ठीक है फिर जाओ अपनी सीट पर बैठो। आज मैं खिलाऊंगा कल से मर्जी हो तो जरूर खिलाया करना।" विक्रम अपना हक जमाते हुए आदेश के स्वर में बोला।

"ओ.. होशियार न बनो! कल से छुट्टी हो जाएगी समझे क्या...! और आज मैं अपने हाथ का बनाया इतना लजीज खाना वेस्ट नहीं जाने दूंगी, ये फरी के लिए बना है फरी ही खायेगी।" जाह्नवी ने अकड़ते हुए जवाब दिया।

"बोल तो ऐसे रही जैसे मुझे बनाने ही नहीं आता, आज मैंने अपने हाथ से अपनी बहन का फेवरेट बनाया है। तुम्हें क्या पता खाना कैसे बनता है बड़ी आयी..!" विक्रम अपना टिपिन खोलते हुए बोला।

"बस..! बस करो आप दोनों, ये मुझे खाना खिला रहे हो या अपनी बातें! अब मुझे आप दोनों के हाथ से खाना है।" फरी ने रूठते हुए अपने कानों पर हाथ रखकर कहा।

"ठीक है पर पहले मैं…!" जाह्नवी ने खुशी से कहा।

"नहीं पहले मैं…!" विक्रम उसे घूरते हुए बोला।

"ओ मिस्टर..! सुना नहीं लेडीज फर्स्ट…!" जाह्नवी ने उसको धमकाते हुए कहा।

"ओ सॉरी सॉरी…! मुझे नहीं पता था आप लेडीज में आती हैं…!" विक्रम ने जोर जोर से हंसते हुए कहा।

"हे राम..! जो भी हो पहले मैं ही खिलाऊंगी बस…!" जाह्नवी ने जिद्दी बच्चे की तरह जिद करते हुए कहा।

"अब खिलाओ भी…! कही ऐसा न हो कि आप दोनों लड़ते रहो और हम भूख से टपक जाएं..!" फरी ने दोनों से नाराजगी जताते हुए मुँह बिचकाकर कहा।

"पगली…! ऐसे तो न बोलो..!" विक्रम की आँखों में आँसू भर आये।

"ओ पगली..! जरा मुँह तो खोलो..!" जाह्नवी ने हंसते हुए कहा।

"देखे तुमने क्या लाया है..!" विक्रम ने जाह्नवी के टिपिन में झांकते हुए कहा, मगर जाह्नवी ने उसके देखने से पहले टिपिन छुपा लिया। विक्रम ने अगला कौर खिलाया।

"सेम सेम…!" फरी ने खाते हुए होंठो पर लगा एक दाना हटाते हुए बोली।

"व्हाट..! इसे मेरा सीक्रेट कैसे पता चला…!" विक्रम और जाह्नवी दोनों ने एक साथ एक ही स्वर में कहा, फिर एक दूसरे की ओर देखकर सिर झुकाकर खड़े हो गए।

"अब खिलाओ भी…! आज तो भूख दोगुनी हो गयी..!" फरी उन दोनों की तरफ देखते हुए बोली।

"हाँ हाँ…!" दोनो ने मुस्कुराते हुए कहा फिर उसे खिलाने लगे।  क्लास में उपस्थित सभी उनकी ओर अजीब सी नजरो से देख रहे थे मगर उन तीनों को जैसे इन सबसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था।

"अभी भाई भी यहां होता तो कितना अच्छा होता।" जाह्नवी ने फरी को अपनी टिपिन का आखिरी कौर खिलाते हुए बोला। यह सुन विक्रम की भौंहे तन गयी, उसके दिल पर लगे पुराने जख्म फिर ताजा होने लगे, वह नम आंखों से जाह्नवी को घूरने लगा।

"भाई..! कहाँ खो गए अब आप खिलाओ भी..!" फरी उसका हाथ पकड़कर हिलाते हुए बोली।

"हं… हाँ!" कहते हुए विक्रम मुस्कुराया।

"सॉरी विक्रम..! मैं जानती हूँ मैंने तुम्हें बहुत हर्ट किया है, माफ कर देना प्लीज..!" जाह्नवी उसकी आँखों की नमी को पहचान गयी थी।

"इट्स ओके न यार! रोज रोज सॉरी कौन बोलता है!" विक्रम शांत स्वर में बोला, मगर उसके शब्दों से जान पड़ रहा था कि ये उसने दिल से नहीं बोला था।

"मेरे भाई ने वही किया जो किसी भी लड़की का भाई करता..! हाँ मैं नासमझ हूँ, नासमझी में अक्सर बेवकूफी कर देती हूँ पर…..!" जाह्नवी ने अपनी बात अधूरी रहने दी।

"अरे कोई बात नहीं, होते रहता है…!" विक्रम ने हौले से मुस्कुराकर कहा।

"आज का खाना तो बहुत लजीज था…!" फरी ने हँसते हुए डकार कर कहा।

"अच्छा किसका खाना ज्यादा लजीज था?" विक्रम ने हँसते हुए पूछा।

"ऑफकोर्स! मेरा ही रहा होगा।" फरी के कुछ बोल पाने से पहले जाह्नवी इतराकर बोली।

"हो ही नहीं सकता…! मेरा रहा होगा।" विक्रम ने जाह्नवी की ओर झुकते हुए कहा, जाह्नवी भी बिना डरे उसको देखते रही। फरी अब तक कुछ नही बोली।

"क्या सोच रही हो…!" विक्रम और जाह्नवी दोनो ने एक साथ पूछा।

"यही कि…. आप दोनों में से कौन किसका था…!" फरी ने अपने माथे पर हाथ रखे सोचने की मुद्रा में बोली।

"उफ्फ…! हद है यार मतलब..!" विक्रम अपने स्थान पर बैठता हुआ बोला। जाह्नवी भी अपनी सीट पर बैठने चली गयी तभी निमय क्लास में आया और अपनी सीट पर बैठ गया।

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इंटरवल में…

निमय घास के मैदान में बैठा धूप ले रहा था, जब से उसका विक्रम के साथ झगड़ा हुआ था वह जाह्नवी के साथ आने के बावजूद क्लास में देर से पहुँचता था, किसी से बातें नहीं करता था, हमेशा चहकने वाला निमय यूँ गुमसुम हो गया था मानों सूरज के ढलने पर सूरजमुखी कुम्हला गयी हो। वह मैदान में बैठा हुआ गौर से घासों को देख रहा था।

"हे निमय…!" सामने से आई एक परिचित आवाज ने आकर्षित किया, उसने सिर उठाकर ऊपर की ओर देखा। उसके सामने विक्रम खड़ा था जिसने उसकी ओर अपना दाहिना हाथ बढ़ाया हुआ था।

"क्या है!" निमय ने विचित्र भाव से घूरते हुए पूछा।

"यार जाने दे ना पुरानी बातों को…! नई शुरुआत तो कभी भी की जा सकती है न!" उसका कोई प्रॉपर रेस्पोंस न मिलते देख विक्रम उसके बराबर में सटकर बैठ गया।

"कुछ बातें कभी न जाये तो ही अच्छा होता है विक्रम..!" निमय ने दूसरी ओर मुंह कर के कहा।

"देख..! तेरी प्रॉब्लम ये है कि तू मेरी बात कभी सुनता नहीं है!" विक्रम उसको समझाने की कोशिश करता हुआ बोला।

"हाँ..! और कोई मुझे अपनी पूरी बात न बताये उसमें भी मेरी गलती है!" निमय ने व्यंग्यपूर्ण स्वर में कहा।

"क्या मतलब..! मैं समझा नहीं!" विक्रम को समझ नहीं आ रहा था कि निमय किस बात को लेकर बैठा हुआ था।

"अनजान बनने की लोग बहुत कोशिश करते हैं, मगर अफसोस अनजान बन नहीं पाते…!" निमय ने तल्ख लहजें में मुस्कुराते हुए कहा।

"देख निमय, तूने मुझे इतना कुछ सुनाया, कायदे से मुझे नाराज होना चाहिए था मगर यहां तू…!" कहते हुए विक्रम ने मुँह बिचकाया।

"अच्छा…! मेरे सैकड़ो कॉल के बाद रिसीव न करना, और मुझे ये न बताना कि वो लड़की तुम्हारी बहन है, जिसके बारे में मैं दिन भर करता रहता था। भला कोई भाई कैसे अपने दोस्त को अपनी बहन से प्यार करने को कह सकता है?" सवालियां निगाहों और शब्दों के बाण बौछार विक्रम पर वार करते हुए निमय ने पूछा।

"क्योंकि जब मेरा दोस्त जिस लड़की से बेपनाह मोहब्बत करता था, शायद आज भी करता है, उसकी कोई कदर नहीं किया, उसकी रेस्पेक्ट के और उसके हर्ट होने से उसे कोई फर्क नही पड़ा था, वो भी अपने बहन के लिए..! तब मैंने सोचा कि प्यार का ना सही पर भाई का प्यार तो दे सकता हूँ न मैं उसे, उस पूरे दिन जब तुमने ये कहा कि भाई बहन के बीच किसी को नहीं आने दे सकते तब से मैं सोचता रहा कि मैं क्या करूँ…! मगर जब कॉल पर भी तुमने यही दुहराया तो मुझे लगा जैसे तुम मजबूर हो.. तुम्हारी उस मजबूरी ने जो न जाने क्यों है... शायद तुम्हारे अपने बुने गए भ्रम के कारण… उसने तुम्हें बांध दिया था, उस पल से ये विक्रम, फरी का भाई हो गया, और ये मैंने कोई एहसान नहीं किया बल्कि तुम्हारी तरह दिल को नकारा नही.. दिल की किया हूँ मैं…!" विक्रम ने एक एक शब्द पर जोर डालते हुए कहा। उसकी आँखों में आँसू उतर आए थे। "रही बात कॉल की.. तो वो फोन मैंने उसी वक़्त तोड़ दिया था इसलिए मेरे पास नहीं था।"

"आई एम सॉरी विक…!" सच्चाई जानकर निमय की आँखे भी नम हो गयी थी।

"भक्क यार..!" विक्रम ने हँसते हुए कहा।

"मैं तेरा दोस्त रहूं न रहूं निम..! मगर मुझे चाहिए तू जिससे प्यार करता है वो तेरे साथ रहे, तेरी वजह से मुझे दुनिया की सबसे बड़ी खुशी मिली, मुझे मेरी बहन मिली…!" विक्रम ने मुस्कुराते हुए कहा।

"मैंने कभी इतना डीप सोचा ही नहीं भाई, जो देखा उसी को मान लिया, जब पूछना चाहा तो वक़्त गुजर गया.. मौका ही नहीं मिला।" निमय ने विक्रम के कंधों पर हाथ रखते हुए कहा।

"थोड़ी गलती तो मेरी भी है न निम! पर अब सब ठीक हो रहा था तो दिल ने कहा विक तू ही कुछ कर ले, निम तो बिच्छू का मंत्र सीखकर साँप से कटवाकर बैठा है, इसलिए चला आया..!" विक्रम ने हँसकर खड़ा होते हुए कहा।

"मतलब….!" निमय उसकी ओर देखने लगा।

"सामने तो देखो..!" विक्रम से हंसते हुए कहा, सामने से फरी और जाह्नवी एक दूसरे का हाथ पकड़े उनकी ओर चली आ रही थी।

"ये क्या है…!" निमय को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था।

"समोसा चटनी…!" जाह्नवी ने हँसते हुए कहा। "और फिक्र मत कर पैसे मैंने खुद से दे दिए हैं,  वो बस तेरे पर्स से निकाली भर थी…!"

"तेरी तो गधी…!" निमय उठता हुआ उसकी ओर भागा, जाह्नवी सबकुछ फरी को पकड़ाकर उल्टे पैर भागी।

"अरे रुक जाओ जिगर के छल्लो…!" विक्रम एक समोसा निकालकर खाते हुए बोला। ये देखकर दोनो वापिस लौट आये।

"ये क्या गरीबो वाले लेकर आ गए यार…!" निमय ने मुँह बिचकाते हुए एक समोसा निकाला।

"इसे खरीदने के लिए अपने पैसे लगाने पड़े मिस्टर गरीब.. वरना तुम्हारे पैसों से तो कल्याण हो जाता..!" जाह्नवी ने समोसा खाते हुए जवाब दिया। निमय उसे घूरकर देखने लगा, यह देखकर फरी और विक्रम जोर जोर से हँसने लगे।

"कभी तो लड़ना बन्द कर लो यार…! जाने कब इस इस दिन का इंतज़ार था…!" विक्रम ने मुस्कुराते हुए कहा, उसके शब्दों में बेहद खुशी झलक रही थी।

"तो पहले ही आ जाते न…! ये सच में लाजवाब है!" निमय ने जाह्नवी का समोसा छीनकर खाते हुए कहा, बदले में जाह्नवी ने निमय के प्लेट से सारे समोसे निकाल लिए।

"अब अपन उदयपुर के नए गैंग की तरह फ्लैश होंगे…!" जाह्नवी ने जबरदस्ती समोसा ठूंसते हुए कहा।

"ये क्या था?" फरी ने उसकी ओर हैरानी से देखते हुए पूछा।

"देखो मेरे मायने में दोस्त वही जिसके सामने पूरी जानवरियत वरना ….!" जाह्नवी ने हंसते हुए कहा।

"ये भी ठीक है..!" निमय ने उसका सर्मथन किया।

"लो..! लगता है आज पहली बार दोनो भाई बहन किसी बात पर एकमत हुए होंगे..!" विक्रम ने हँसते हुए कहा।

"तो इसी खुशी के मौके पर कुछ हो जाये…!" फरी ने हँसते हुए कहा, वह आज बेहद खुश थी।

"तेरे दर पे सनम चले आये… तू न आया तो हम चले आये..!" निमय ने गाना शुरू किया, जिसके बाद सभी ने सुर में सुर मिला दिए।

"कहो अब इंतेज़ार किसका है… वक़्त बैठा है यही सिराहने मेरे..
साथ तुम सब हो तो कब गुजर जाएगा पल, बन गए यही जो ठिकाने मेरे…!" निमय ने भारी आवाज बनाते हुए किसी शायर की भांति बोला।

"वाह वाह…! यहाँ और कोई शायर हो तो सुना दो कुछ..!" विक्रम और जाह्नवी  ने तालिया बजाते हुए कहा, सभी फरी की ओर देखने लगे।

"हौसला, गम, शिद्दत, बहार आपका है
आइये जनाब, इंतेज़ार आपका है…!" काफी सोचने के बाद फरी ने निमय की शायरी का जवाब दिया।

"अच्छा सुनो कल से तो होली की छुट्टी रहेगी न..!" जाह्नवी ने सभी से पूछा।

"हाँ…! तो…!" विक्रम ने प्रत्युत्तर में कहा।

"मुझे तो होली का तोहफा मिल गया…" फरी ने मुस्कुराते हुए कहा।

"क्या..!" सभी ने एक स्वर में पूछा।

"आप सब…! इतना बेशकीमती उपहार मैंने कभी नहीं पाया।" फरी ने कहा, कहते वक़्त उसके होंठो पर गजब की मुस्कान थी।

"अरे मैं बोल रही थी क्यों न हम सब कहीं घूमने चलते…!" जाह्नवी ने कहा।

"अरे न बाबा न..! होली में बाहर जाने की भूल मैं न करने वाला।" निमय ने साफ इंकार करते हुए कहा।

"तेरे पर तो सुबह सुबह बाल्टी भर पानी डालूंगी मैं… रंग घोल के..!" जाह्नवी ने मुँह बिचकाकर कहा।

"हद है यार…!" निमय भागकर विक्रम के पीछे छिपता हुआ बोला।

"चलो अब क्लास चलने का टाइम हो गया है…!" फरी ने उठकर अपने कपड़े को झाड़ते हुए कहा।

"तब तक सोच लेना जो सोचना हो…!" कहते हुए विक्रम भी उठ खड़ा हुआ।

"हाँ हां…!" कहते हुए निमय और जाह्नवी भी उनके साथ क्लास की ओर भागे।

क्रमशः….


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6 Comments

🤫

28-Feb-2022 12:14 AM

Hahaha sahi h balti bhar pani nimay to yunhi dubki laga lega🤭🤭

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Thank you so much ❤️

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अफसाना

20-Feb-2022 04:34 PM

गुड स्टोरी

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Seema Priyadarshini sahay

02-Feb-2022 05:27 PM

बहुत बढ़िया भाग

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